
लेकिन, फिर भी इस इलाके में हर सामुदायिक शिक्षक व छात्र इंटरनेट, कम्प्यूटर से जुड़ा है और टेबलेट व टचस्क्रीन डिवाइसेज की मदद से डिजिटल शिक्षा भी प्राप्त कर रहा है। इसकी सिर्फ एक वजह है झमट्से गट्सल। झमट्से गट्सल ने समुदाय के लिए एक सांस्कृतिक व मौलिक जरूरतों के तहत डिजिटल लैब स्थापित की है। इसे स्थापित करने में काफी मसक्कत करनी पड़ी।
चूंकि लूमला में कोई इंटरनेट सेवा ही मुहैया नहीं थी, एकमात्र विकल्प था कि झमट्से गट्सल में एक वीसैट पर आधारित इंटरनेट लगवाया जाए और दुनिया से जुड़ा जाए। मगर झमट्से गटसल में वीसैट पर आधारित इंटरनेट से भी यह मुश्किल हल नहीं हो पाई। क्योंकि यह बहुत मंहगा व धीमा साधन है। खैर जो भी हो फिर भी यहां के 85 बच्चे व स्टाफ इंटरनेट के आदि हो चुके हैं। यहां छात्रों व शिक्षकों के उपयोग के लिए इंटरनेट के लिए करीब 25,000 प्रति महीने अदा किया जाता है, बावजूद इसके यहां हमेशा बैंडविर्थ की बाट जोहनी पड़ती है।
झमट्से गट्सल के अलावा इस गांव की एक और बात काबिले तारीफ है वो ये कि यहां की अंगुलियों पर गिनी जा सकने वाली जनसंख्या (396) में महिला पुरुष अनुपात (199/197) बहुत अच्छा है। वहीं इस जिले की भूगौलिक स्थिति की बात करें तो त्वांग भूटान और तिब्बत के बार्डर से सटा है। इन सब सकारात्मक पहुओं के साथ सिक्के का दूसरा पहलू यहां भी धूंधला ही है। लूमला के औसत परिवार का जीवन स्तर काफी नीचा है, वे गरीबी, गंदगी और कई बार तो बिना खाने के भी गुजारा करते हैं। बच्चे उनके समुदाय के सबसे प्रभावित सदस्य हैं, जिनके लिए शिक्षा के मौके भी कम ही रहते हैं। “लूमला में मुख्यतः पारंपरिक जनजातियां रहती हैं जिन्हें मोनपा समुदाय कहा जाता है और वो अपनी संस्कृति, पारम्परिक कला व संगीत से प्यार करते हैं, ऑरगेनिक खेती करते हैं।
फिर भी यहां लोगों की गरीबी और प्रकृति की कुछ नाराज़गी के बीच यहां झमट्से गटसल किसी वरदान से कम नहीं हैं। झमट्से गटसल एक घर के साथ-साथ, एक ऐसा स्कूल भी है जहां बच्चे लूमला और आसपास के गांवों से आते हैं।
दरअसल, झमट्से गटसल का अहम मकसद अनाथ, अपने परिवार से बिछड़ चुके और गरीबी में रह रहे बच्चों के लिए एक सुरक्षित और घर जैसा माहौल देना है। मैं झमट्से गटसल को एक आदर्श एकीकृत केंद्र कहूंगा जहां बच्चों का सर्वांगिण विकास होता है। यहां वो न केवल अच्छी शिक्षा प्राप्त करते हैं बल्कि खेल, स्वास्थ्य, आधुनिक तकनीक, जैविक खेती, राजमिस्त्री, बढ़ईगिरी, दोबारा उपयोग में आने वाली उर्जा, लीडरशिप व सामाजिक उद्यमिता की शिक्षा भी पाते हैं। झमट्से गटसल स्कूल में कई प्रायोगिक शैक्षिक प्रोग्राम कराए जाते हैं ताकि यहां कम उम्र बच्चों में भी कौशल विकसित हो सके। सिर्फ इतना ही नहीं यह सामुदायिक स्कूल यहां स्थानीय मोनपा परंपराओं को बरकरार रखने में भी मदद करता है। बच्चों को पारंपरिक संगीत, नृत्य एवं कला की शिक्षा भी दी जाती है जो कि उनके पढ़ाई के साथ-साथ अतिरक्त गतिविधियों के रूप में कराई जाती है। हां वहां बच्चों को अत्यधिक आधुनिक तकनीक से रूबरू कराने में थोड़ी मुश्किल जरूर पेश आती है, क्योंकि वहां इंटरनेट की क्नेक्टिवी काफी कमजोर है।
स्थानीय लोगों की मानें तो “लूमला सर्किल में बीएसएनएल के द्वारा वाईमैक्स सिस्टम लगाने की बात चली थी, लेकिन यह सब तकनीक टेस्टिंग के दौरान ही फेल हो गया था। जिस तरह देश के सुदूर इलाकों में क्नेक्टिविटी की दिक्कत है उसे वहां भी महसूस किया जा सकता है।
हालांकि, बच्चे यहां इंटरनेट का इस्तेमाल अपने स्कूल के रिसर्च प्रोजेक्ट, रिपोर्ट, प्रेजेंटेशन, फिल्म वर्कशॉप के लिए वीडियो व ऑडिया एडिटिंग जैसी पढ़ाई के लिए करते हैं। शिक्षक एप्पस व अन्य़ ऑनलाइन टूलस् का इस्तेमाल भाषा और कम उम्र के बच्चों के लिए गणित के विषय को समझाने के लिए करते हैं। सबसे खास बात यह है कि झमट्से गट्सल में इंटरनेट का इस्तेमाल इसके आस-पास के गांव वासियों और समुदायों को टेलिमेडिसिन सेवाएं जैसी सुविधा देने के लिए भी किया जाता है।
ऐसे में हम कह सकते हैं कि अगर झमट्से गट्सल भारत के सुदूर इलाकों में बसे अव्यवस्थित गांवों को सूचना के माध्यम से समाज को जोड़ सकता है, तो इसी डिजिटल तकनीक से ये भुगोलिक रूप से दूसरे देशों के लोगों से भी जुड़ सकता है। अगर हमारा संगठन झमट्से गट्सल तक पहुंच सका तो सिर्फ इसलिए क्योंकि यह इंटरनेट से कनेक्टेड है। मगर इस संस्था ने हमें और खुशी व हैरानी में तब डाला जब हमने यह जाना कि यह संस्था अपने लिए ऐसी इंटरनेट क्नेक्शन की मांग कर रही है जो बिना किसी जोड़ के और वाई-फाई द्वारा इन तक पहुंचे। इतना ही नहीं झमट्से गट्सल यह भी चाहता है कि लूमला गांव और इसके आस-पास के गांवों के परिवारों को भी वाई-फाई क्नेक्टिवी से जोड़ा जाए। यह संस्था इस बात पर विश्वास करती है कि जितने भी पिछड़े और सुदूर समुदाय हैं उन्हें हाई-स्पीड इंटरनेट की उतनी ही पुरजोर जरूरत है। इसलिए डिजिटल एम्पावरमेंट फाउंडेशन यह योजना बना रहा है कि हम बीएसएनएल कनेक्टिविटी को त्वांग से लूमला तक वायरलेस के माध्यम से पहुचायेंगे। एक बार वायरलेस हाई-स्पीड इंटरनेट क्नेक्टिविटी झमट्से गट्सल कैंपस में आ गई तो यहां से वे लोग दूसरे गांवों व घरों में यह सुविधा खुद-ब-खुद पहुंचाएंगे।
इन सब मुद्दों से दो-चार होने के बात हमें यह समझ में आया कि दूरसंचार विभाग, शिक्षा विभाग से संयुक्त होकर अपने यूएसओ फंड का इस्तेमाल कर नेशनल ऑप्टिक फाइबर नेटवर्क लाइन की मदद से 1.2 मिलियन स्कूली छात्रों और शिक्षक समुदाय को हाई-स्पीड इंटरनेट की इस्तेमाल की इजाजत दे सकता है। अब समय आज चुका है जब यह बच्चे एक सूचना संपन्न समुदाय का हिस्सा बनने को तैयार हैं।
यह अपने आप में एक रोचक है कि किस प्रकार मोबाइल पत्रकारिता के क्षेत्र में लोकतांत्रिक माध्यम उपकरण के रूप में उभरकर सामने आया है। वो भी उन लोगों के लिए जो अधिकांश निरक्षर हैं और ऐसी भाषा बोलते हैं जिससे देश के लोगों आज भी अंजान हैं
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