
माना कि गांवों में कंप्यूटर और ब्रॉडबैंड आज भी एक चुनौती बनी हुई है, लेकिन इंटरनेट के क्षेत्र में जिस तरह भारत लगातार आगे बढ़ रहा है वो काफी सराहनीय है। सन् 2000 के झटके के बाद इंटरनेट और वेब की दुनिया ने खुद को संभालते हुए जो परिपक्वता दिखाई उसका नतीजा सबके सामने है। इस दरमियान दूरसंचार क्षेत्र भी परिपक्वता की ओर बढ़ा और विश्व के तकरीबन हर शख्स तक पहुंचने में कामयाब रहा। लेकिन तकनीकी दुनिया में अगर कुछ सबसे अहम था तो वह था इंटरनेट का हमारे रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा बन जाना।
एक दशक के इस बदलाव का अगर सबसे बड़ा असर कहीं पड़ा तो वो था डाक विभाग और कोरियर एजेंसियों का कामकाज। कुछ साल पहले रोज कभी न कभी कोई न कोई परेशानहाल डाकिया चिट्ठियां बांटते हुए नजर आ जाता था। लेकिन आज उसके दर्शन दुलर्भ हो गए हैं। जहां एक तरफ पोस्ट ऑफिस का धंधा मंदा पड़ गया, वहीं इसी दशक में आई डॉट कॉम क्रांति ने बहुतों को शिखर पर पहुँचा दिया। मंदी की मार झेल रहे साल 2000 में कुछ लोग ही इसकी मार से बचे थे। लेकिन, थोड़े ही दिनों में वे कुछ और ज़्यादा मज़बूत डिजिटल बिज़नेस लेकर सामने आ गए।
इसी बीच पिछले कुछ सालों में सूचना प्रौद्योगिकी की दुनिया में कई नए ट्रेंड भी शुरू हुए। खासकर सोशियल नेटवर्किंग, क्लाउड कम्प्यूटिंग, इंटरनेट वीडियोज और विकीलीक्स ने इंटरनेट इस्तेमाल करने वालों पर गहरी छाप छोडी़ है। साल 2013 ने इन ट्रेंड्स को आगे बढ़ाते हुए कई अहम परियोजनाओं को समय की कसौटी पर कसा। इनमें फेसबुक से लेकर ट्विटर तक शामिल हैं। इससे सूचनाओं के आदान.प्रदान और संचार के कुछ नए माध्यम उभरे और जिससे ऑनलाइन दुनिया से जुड़े लोगों के बीच दूरियां और भी कम हो गईं।
ऐसे में कहना गलत नहीं होगा कि भारत में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में सूचना प्रौद्योगिकी और इंटरनेट की सफलता अब किसी बहस का मुद्दा नहीं रहा, ये एक तथ्य बन चुकी है। अगर हम भारत की ही बात करें तो खासकर भारत पहले सॉफ्टवेयर के क्षेत्र, फिर आउटसोर्सिंग और अब इंटरनेट आधारित सेवाओं के मामले में बहुत आगे बढ़ चुका हैं।
इसी बाबत हाल ही में फेसबुक के हवाले एक खबर आई थी कि वो विकासशील देश के लोगों को इंटरनेट इस्तेमाल करने वाले समाज का हिस्सा बनने में मदद करना चाहती है। यानि मतलब साफ है कि ज्यादा से ज्यादा लोगों तक इंटरनेट के माध्यम से सोशल मीडिया की पहुंच बनाना। जिससे दुनिया भर के करीब 5 अरब लोग इंटरनेट के जरिए एक दूसरे से जुड़ सकेंगे।
दुनिया के हर इंसान तक इंटरनेट की पहुंच के लिए गूगल ने भी हाल ही में ‘लून’ के नाम से एक नई परियोजना की शुरुआत की है जिसके तहत स्पेस से इंटरनेट संपर्क करने का प्रावधान है। अगर ये कोशिश कामयाब होती है तो यकीनन ये सैटेलाइट कनेक्शन के मुकाबले ज़्यादा किफायती होगा और इससे ज्यादा से ज्यादा लोग जुड़ सकेंगे।
हालांकि फ़िलहाल सिर्फ़ दो अरब 70 लाख लोग यानि कि पूरी आबादी का केवल एक तिहाई (1/3) लोग ही इस समय इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं। कॉमस्कोर की सलाना रिपोर्ट, ‘2013 इंडिया डिजिटल फ़्यूचर इन फोकस’ के मुताबिक भारत में घरों और दफ्तरों से करीब सात करोड़ 39 लाख यूज़र्स इंटरनेट का इस्तेमाल कर रहे हैं। जबकि भारतीय दूरसंचार विनियामक प्राधिकरण (ट्राई) ने मार्च 2013 में अपनी रिपोर्ट में कहा था कि भारत में करीब साढ़े 16 करोड़ इंटरनेट यूज़र्स है।
कुल मिलाकर साल 2013 के इस उतार-चढ़ाव भरे सफर में डिजिटल एंपावरमेंट फाउंडेशन का भी एक बड़ा योगदान रहा है। डिजिटल एंपावरमेंट फाउंडेशन उस वक्त वजूद में आया था, जब सन् 2000 के झटके के बाद इंटरनेट और वेब की दुनिया लड़खड़ा रहा था। उस वक्त ऐसे एक मिशन की जरूरत थी जो वास्तव में इंटरनेट औऱ वेब दुनिया से दूर दराज गांव के लोगों को रूबरू कराए। अपनी स्थापना के ठीक 10 साल बाद डिजिटल एंपावरमेंट फाउंडेशन ने एक गैर सरकारी संस्था के रूप में कई अहम मुकाम हासिल कर लिए हैं। ये संस्था गांवों को सूचना और तकनीक से लैस करने से लेकर आईटी के क्षेत्र में बेहतरीन काम करने वाले संस्थाओं को हर साल मंथन अवॉर्ड्स से सम्मानित करती रही है। इस साल भी डिजिटल एंपावरमेंट फाउंडेशन द्वारा आयोजित होनेवाले 10वें मंथन अवॉर्ड्स समारोह में 5-6 दिसंबर 2013 को 10 देशों के करीब 2000 सामाजिक कार्यकर्ताओं के शामिल होंने की उम्मीद है।
हालांकि, इस तरह की कोशिशें लगातार जारी रखने की जरूरत है, लेकिन इन कोशिशों के बावजूद अभी भी हमारे सामने कुछ ऐसी चुनौतियाँ हैं जिनका हमें स्थानीय हल खोजने की जरूरत है।
ओसामा मंजर
लेखक डिजिटल एंपावरमेंट फउंडेशन के संस्थापक निदेशक और मंथन अवार्ड के चेयरमैन हैं। वह इंटरनेट प्रसारण एवं संचालन के लिए संचार एवं सूचनाप्रौद्योगिकी मंत्रालय के कार्य समूह के सदस्य हैं और कम्युनिटी रेडियो के लाइसेंस के लिए बनी सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय की स्क्रीनिंग कमेटी के सदस्यहैं।
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