
यह लेख पहले हिंदुस्तान अखबार में छपा था|
पिछले दिनों मेरी मुलाकात लिपिका से हुई। वह असम के सोनापुर की हैं। स्कूली शिक्षा के लिए उन्हें जद्दोजहद तो करनी ही पड़ी, कॉलेज में दाखिला लेने के लिए भी माता-पिता को खूब मनाना पड़ा। कुछ वर्षों पहले उनकी नजर सामुदायिक सूचना संसाधन केंद्र (सीआईआरसी) पर पड़ी। यह सीखने की उनकी ललक है कि आज वह उस केंद्र की कंप्यूटर प्रशिक्षक हैं। वह कहती हैं, मेरी मां ने बताया था कि औरत को सोच-समझकर बोलना चाहिए। दादाजी घर-परिवार को संभालने की नसीहत देते थे। मगर मैं अपनी बेटी से यही कहूंगी कि औरतों को भी सपने देखने और उसे पूरा करने का अधिकार है।
लिपिका से मेरा मिलना एक प्रोजेक्ट का हिस्सा था। हम यह जानना चाह रहे थे कि डिजिटल शिक्षा से लैस महिलाएं सामाजिक व आचार-व्यवहार-संबंधी किस तरह के बदलाव महसूस करती हैं? साल 2015 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 72 फीसदी महिलाओं के पास मोबाइल फोन नहीं हैं। स्टैटिस्टा वेबसाइट की मानें, तो अक्तूबर, 2015 तक शहरी भारत में सिर्फ 38 फीसदी महिलाएं इंटरनेट का इस्तेमाल कर रही थीं, जबकि गांवों में यह आंकड़ा 12 फीसदी था। हम यह सुनते ही हैं कि फलां पंचायत या धार्मिक समूह ने महिलाओं के लिए मोबाइल के इस्तेमाल पर रोक लगा दी है। कई समूह नहीं चाहते कि लड़कियां कंप्यूटर सीखें। आखिर उस समुदाय या गुट के पुरुषों को किससे डर है? जबकि ग्रामीण भारत में इतने वर्षों तक काम करते हुए मेरी नजरों से कई ऐसी महिलाएं गुजरी हैं, जिनमें डिजिटल शिक्षा पाने की उत्कट इच्छा है। इस वक्त कुल 161 सीआईआरसी में से कम से कम 60 की कोऑर्डिनेटर या प्रशिक्षक औरत हैं। और वे केंद्र समय-सीमा, जवाबदेही, प्रभाव जैसे मानकों में श्रेष्ठ केंद्रों में शुमार हैं।
घाना के विद्वान जेम्स एम्मानुएल विगायर-एग्री ने कहा है कि अगर आप एक पुरुष को साक्षर बनाते हैं, तो वह खुद शिक्षित होता है, मगर एक महिला को साक्षर बनाते ही आप एक परिवार को शिक्षित बनाते हैं। वाकई इसे झुठलाया नहीं जा सकता। राजस्थान की 32 वर्षीय चंद्रलेखा की कहानी बताता हूं। शादी के बाद उन्हें यही सुनना पड़ा कि पढ़ाई-लिखाई तो ठीक है, मगर शादी के बाद महिलाओं को घर और बाल-बच्चे ही संभालने चाहिए। मगर उनके पति का सहयोग ही था कि कभी मवेशी चराने वाली यह महिला आज सीआईआरसी से लाभान्वित होकर महिला-अधिकारों व डिजिटल शिक्षा की वकालत कर रही है। ऐसी कई साहसी महिलाओं की कहानी डिजिटल रोशनी में पढ़ी जा सकती है।
डिजिटल शिक्षा लोगों पर परोक्ष असर डालती है। यह महिलाओं में सपने पूरा करने, सामाजिक बेड़ियों को तोड़ने और चुनौतियों को स्वीकार करने का विश्वास पैदा करती है। जाहिर है, भारत जितना अधिक डिजिटल होगा, महिलाएं पुरुष दबदबे को तोड़ने में उतनी सक्षम होंगी।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)