सरकारी गोदाम में सड़ रहा अनाज: राशन कार्ड नहीं होने के कारण भूखे सोने पर मज़बूर है करोड़ों परिवार
बिहार के पश्चिमी चंपारण के पचकहर गांव की 35 वर्षीय मनीषा देवी को राशन कार्ड में संशोधन के लिए आवेदन दिए हुए इस महीने की 27 तारीख को पूरे दो वर्ष हो जायेंगे, उन्हें अपने राशन कार्ड का अब तक इंतज़ार है. मनीषा कहती हैं, “राशन कार्ड के लिए चक्कर लगा-लगा कर थक गयी, अब तक राशन कार्ड बन कर नहीं आया”. मनीषा के पति देहाड़ी-मज़दूरी का काम करते हैं. 3 बच्चों कि माँ मनीषा आगे कहती हैं, “लॉकडाउन से पहले हम भी खेतों में कुछ काम कर लेते थे, मेरे पति को भी गांव में काम मिल जाता था, जिस से परिवार किसी तरह चल रहा था. अब तो उधार लेकर किसी तरह खाने का इंतेज़ाम कर रहे हैं, लेकिन ऐसा कब तक चलेगा कुछ समझ नहीं आ रहा है.”