
किसी ज़माने में मलेरिया बेहद खतरनाक बीमारी मानी जाती थी। जिसकी वजह से करीब 3 साल पहले यानी साल 2010 में दुनिया भर में 6 लाख 60 हज़ार लोगों की मौत हुई थी। लेकिन, आज नई तकनीक और दवाओं की खोज के साथ-साथ सामाजिक जागरूकता के चलते मलेरिया का खौफ लोगों के मन से निकल चुका है।
लेकिन, एक दूसरे प्रजाति के मच्छर ने हाहाकार मचा रखा है। एक खास किस्म के मच्छर से फैलने वाली बीमारी डेंगू का डर लोगों के मन में घर कर गया है। तमाम सरकारी दावों के बावजूद हर साल डेंगू की चपेट में आनेवाले लोगों का आंकड़ा बढ़ता ही जा रहा है। गौर करने वाली बात ये है कि आधिकारिक आंकड़े असली आंकड़ों की तुलना में काफी कम होते हैं, क्योंकि इनमें सिर्फ वही मामले गिने जाते हैं, जिसमें मरीज इलाज कराने के लिए सरकारी अस्पतालों में जाते हैं, और जिनकी पुष्टि सरकारी प्रयोगशालाओं से होती है।
इसी सिलसिले में ट्रॉपिकल डिजीज (उष्ण कटिबबंधीय ) के स्पेशलिस्ट डॉ स्कॉट हैलस्टीड के मुताबिक भारत में हर साल करीब 3 करोड़ 70 लाख लोग डेंगू वाले वायरस का शिकार होते हैं, जिनमें से तकरीबन 2 लाख 27 हजार 500 लोग ही इलाज कराने के लिए अस्पतालों में भर्ती होते हैं।
दरअसल, डेंगू मच्छरों के जरिए फैलाया जाने वाला एक ऐसा रोग है, जिसके फ्लू के लक्षणों से मिलते-जुलते हैं। चूंकि डेंगू और फ्लू के समान लक्षणों की वजह से कई बार इसका पता लगाना मुश्किल हो जाता है। और कई मामलों में यह जानलेवा भी साबित हो जाता है।
दूसरी तरफ, आंकड़ों को कम करके पेश करने की आदत के चलते डेंगू के असल खतरे को समझ पाने में दिक्कत आती है, नतीजतन इससे निपटने के लिए जिस तरह की तैयारी की जानी चाहिए, वह नहीं हो पाती, और इससे डेंगू से होने वाली मौतों में इजाफा होता जा रहा है। । जिसकी एक मात्र वजह है स्वास्थ्य एवं चिकित्सा सुविधा की कमी,जिसके चलते इसने खतरनाक रूप अख्तयार कर लिया है। और पिछले कुछ सालों में डेंगू बच्चों में बीमारी और उनकी असमय मृत्यु का एक अहम वजह बनकर समाने उभरा है।
अब तो आंकड़ों को भी देखकर ऐसा लगने लगा है कि भारत मच्छरों द्वारा फैलाई जाने वाली इस खतरनाक बीमारी का केंद्र बनता जा रहा है। 1970 से पहले सिर्फ नौ देशों ने डेंगू को महामारी के रूप में झेला था। लेकिन, 21वीं सदी के पहले दशक तक आते-आते तकरीबन 100 देशों में इस बीमारी ने अपने पांव पसार लिए हैं। भारत में डेंगू से जुड़े आंकड़ें खुद ही इसकी कहानी बयान कर रहे हैं।
इस साल 30 सितंबर तक पूरे देश में डेंगू से अब तक 109 मौतें दर्ज की गई हैं,जबकि 38,000 से ज्यादा मामले दर्ज किए गए। भारत में हर साल डेंगू और उसकी वजह से मौत की संख्या बढ़ती जा रही है। स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक, इस साल डेंगू से दक्षिण भारत के राज्य सबसे ज्यादा प्रभावित हुए। केरल में डेंगू के 7,000 मामले और 23 मौतें, आंध्र प्रदेश में 5,680 से ज्यादा मामले और 12 मौतें, ओडिशा में 5,012 मामले और पांच मौतें और तमिलनाडु में 4,294 मामले दर्ज किए गए, यहां किसी की डेंगू से मौत नहीं हुई। गुजरात और महाराष्ट्र में भी डेंगू के 2,600 से ज्यादा मामले दर्ज किए गए।
स्वास्थ्य सेवाओं की बेहतर व्यवस्था औऱ जागरुकता न होने की वजह से ही डेंगू भारत जैसे तमाम अल्पविकसित देशों के लिए एक ऐसी स्वास्थ्य चुनौती बनता जा रहा है, जिस पर अगर वक्त रहते गौर नहीं किया गया, तो नतीजे काफी खौफनाक हो सकते हैं।
आज इंटरनेट और तकनीक युग में जरूरत है ज्यादा से ज्यादा जागरूकता फैलाने और स्वास्थ्य सेवाओं को और बेहतर करने की। ‘डब्लू एच ओ’ यानी विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, डेंगू अकसर शहरी गरीब इलाकों, उपनगरों और ग्रामीण क्षेत्रों को ज्यादा प्रभावित करता है। एक आंकड़े के मुताबिक पिछले 50 सालों में डेंगू के मामलों में 30 गुना इजाफा हुआ है और हर साल पांच से दस करोड़ लोग इस बीमारी का शिकार होते हैं।
तस्वीर का एक और पहलू लोगों के नजरिये और साफ-सफाई के प्रति जागरूकता का न होना भी है। डेंगू जैसी बीमारियां तब फैलती हैं, जब हम अपने आसपास की जगहों की पर्याप्त सफाई नहीं करते और जलभराव होने देते हैं।
इसके अलावा सरकारी सिस्टम भी किसी हद तक जिम्मेदार है, जिसके चलते नियमित साफ सफाई नहीं हो पाती। इसका एक उदाहरण है भारत में कूड़ा प्रबंधन सिस्टम, जो अभी कागज पर ही हैं, व्यवहार में कुछ ठोस नहीं हुआ है। हमारे देश की राजधानी दिल्ली में कई इलाके ऐसे मिल जाएंगे, जहां सड़कों के किनारे, गलियों और मुहल्ले में गंदगी का ढेर फैला मिल जाएगा । इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि देश की राजधानी का ये हाल है तो उन इलाकों में क्या मंजर होगा जो विकास की मुख्यधारा से कोसो दूर हैं।
इसी गंदगी का नतीजा है कि राजधानी में अब तक डेंगू के कुल 4074 मामले दर्ज हो चुके हैं, जिनमें से 4034 दिल्ली के और 40 अन्य राज्यों के हैं। अगर इस पर काबू पाना है तो इसके लिए सबको मिलकर कोशिश करने की जरूरत है।
फिलहाल, डेंगू का कोई इलाज नहीं है स्वच्छता और सावधानी के साथ-साथ जागरुकता से ही इससे निपटा जा सकता है और बड़े पैमाने पर जागरुकता के लिए सबसे जरूरी है कि सूचना औऱ तकनीक का भरपूर इस्तेमाल किया, ताकि डेंगू के बारे में ज्यादा से ज्यादा लोगों को बताया जा सके। आज तकनीक युग में टीवी और अखबारों से कहीं ज्यादा इंटरनेट की पहुंच बन चुकी है। ऐसे में अगर, सोशल मीडिया और कॉम्यूनिटी रेडियो जैसे संसाधनों का सही इस्तेमाल किया गया तो शहरी इलाकों के साथ-साथ गांवों में भी लोगों को डेंगू से बचने और उसके उपचार के बारे में आसानी से जागरुक किया जा सकता है।
ओसामा मंजर
लेखक डिजिटल एंपावरमेंट फउंडेशन के संस्थापक निदेशक और मंथन अवार्ड के चेयरमैन हैं। वह इंटरनेट प्रसारण एवं संचालन के लिए संचार एवं सूचनाप्रौद्योगिकी मंत्रालय के कार्य समूह के सदस्य हैं और कम्युनिटी रेडियो के लाइसेंस के लिए बनी सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय की स्क्रीनिंग कमेटी के सदस्यहैं।
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